प्रति,
माननीय, आदरणीय, पूजनीय, प्रातःस्मरणीय, पार्टी की तारणहार, महामॅडमजी को भंडारासे नाचीज नाना का आदर से नमस्कार. (भंडारा याने वो कमल के फुलवाले वो धनुष्यबानवालोंको जिस भंडारेमे खानेकु बैठानेवाले है वो भंडारा नही. ये वेगळा है. ये हमारे गांव का नाम है.)
तो चिठ्ठी लिखने का कारण ये है की, दिल्ली में आकर भी पांच पांच दिनतक आपकी भेट नही मिलती ऐसा सुना है, इसलिए समक्ष आनेका टाला और चिठ्ठी लिख रहा हूं. हम दूसरे के अनुभव से शाने होनेवाले लोग है. हमारे भाषा मे म्हण है ,’ पुढच्यास ठेस मागचा शाना.’ तो आपको ये बतानेका था के जबसे मैं अपनी पार्टी का यहाँ का अध्यक्ष बनेल है ना, तबसे पार्टी के कार्यकर्ताओं का उत्साह नुसता ओसंड के वाह रहा है. उनका ओसंड के वाहनेवाला उत्साह देखकर मैं तो इतका भाराव गया की, मैंने इसके पुढ की सगळ्या निवडणूका एकदम स्वबळपे लढनेकी घोषणा कर दी. घाईगर्दी में आपकु पूछने का रह गया, माफी कर दो. ये बारेमे मैंने अपने एक माजी मुख्यमंत्रीसे पूछा, तो वो बोला के, मैडम ने कभी कार्यकर्ताओंका ओसंडनेवाला उत्साह देखाच नही, उनको पूछ के क्या करेगा ? सच्ची बोलू मॅडम, ये जो माजी मुख्यमंत्री होते है ना, चाहे वो किसी भी पार्टी के हो, जब उनका वापस से मुख्यमंत्री बननेका कोई चानस नही रहता ना तब थोडे चिड़चिड़े हो जाते है ,ऐसा मेरा निरीक्षण है. दूसरा ऐसा के जिन के साथ अपनने सरकार में ‘स्लीपिंग पार्टनरशिप’ की थी वो दोनों मिलकर अगलीबार अपनेकु टांग मारनेवाले है. पक्की खबर है. उसके पहले अपननेच उनकु टांग मारनेकी क्या ? वैसे भी वो दोनों एकमेकको कभी भी टांग मार सकते है.आप बोले वैसा करते है.
आपका सेवक
नाचीज नाना (महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष )
ता. क. – जबसे मैं प्रदेशाध्यक्ष बनेल है, तबसे सब मुझे ‘ओसाड गावचा पाटील’ बोलके चिड़ाते है. मेरेकुु मुख्यमंत्री बनाने का देखो ना जरा. – नाचीज नाना.
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नाचीज नाना,
महाराष्ट्र प्रदेशाध्यक्ष, आपका खत मिला. वो कमल के फूलवाले और धनुष्यबानवाले एकदूसरे से लड़ रहे हैं या फिरसे साथ आने की तैयारियां कर रहे हैं ? एक शिवभोजन थाली ख़िलानेकी बात करता है, तो दूसरा भंडारेमे खाने को बिठाने की बात करता है, कुछ समझ में नही आता.उधर मराठी मानुस झगड़ने के लिये एकदूसरे को खानेपर बुलाते है क्या? वो उधोजीराजे भी दिल्लीमें आकर जलेबी और फाफड़ा खाकर गए है. कही, ‘जलेबी ने फाफडो , उधोजीराजे आपडो.’ ना हो जाए ! जरा ध्यान देना.
आपने लिखा है के आपके अध्यक्ष बननेसे पार्टी कार्यकर्ताओं में बड़ा उल्हास उमड़ रहा है. हमने तो सुना है के वहा अपनी पार्टी में कोई कार्यकर्ता बचा ही नही, सभी नेता बन बैठे हैं. ठीक से पता करो. अकेले के दमपर इलेक्शन लढनेकी बात कुछ जची नही. ख़र्चा बहोत हो जाता है. फूटी घागरमे कितना पानी डालोगे ? खुदखुशी करते वक्त पिछेवालोंको कर्ज में क्यों डुबोना ? जरा सोचो. रही बात आपको मुख्यमंत्री बनाने की , तो कमसे कम दस बारा साल तो भी रुकना पड़ेगा. ( कोकण के राने से परामर्श लें.) नही तो वो दूसरे थाकरे से परामर्श लेकर अपना एक शैडो कैबिनेट बना लो और खुद को उसका मुख्यमंत्री घोषित कर दो. हमारी इजाजत है.
मैडम ( कार्यकारी पार्टीअध्यक्ष)